Saturday, April 18, 2020

चॉकलेट्स

चॉकलेट्स ..

चॉकलेट्स
बहुत पसंद थी उसे 
मुझे भी 
मुझे क्यों ​?​
पता नही ...शायद
क्योंकि उसे पसंद थी 
हालांकि 
कभी खाई नही मैंने

मजा आता था 
उसे खाने में ​
और मुझे 
उसे खाते देखने में
बात शुरू करने का 
शायद 
तरीका ही ये हो गया था  
सुनो 
चाकलेट खाओगी 
....लाये हो 
......आज भी 
वो मासूमियत से 
खिल जाती थी
याद नहीं 
कभी मना  किया हो उसने 
​मुझे तो ​..कभी नहीं  
पिघले हुए 
कोको का स्वाद 
ऐसे भी सर चढ़ के 
बोलता होगा 
सोचा नही था 

कहा न 
चॉकलेट्स 
बहुत पसंद थी उसे 
इसीलिए शायद 
उसकी बातें भी 
चाकलेट जैसी ही थी 
मन में घुल सी जाती थी 
मिठास के साथ 
ऊपर से सख्त 
पर
प्रणय की उष्णता 
जिसे पिघला ही देती हैं 
और वो दहक उठती थी
लावे की तरह

जाने क्यों वो
सभी चाकलेटस के रैपर  
संभाल लेती थी 
अपने पर्स में
अजीब था न
रैपर्स से भला 
क्या लगाव होगा उसे 
उसने लिक्खा था 
हर एक रैपर पर 
उस दिन की तारीख
और उस दिन का नाम 
तोहफों की तरह 
पागलपन था शायद
या की मुहब्बत
तब मुझे लगता था 
कि वो एक चाकलेट हैं 
और मैं... उसका रैपर
तब
मेरे पास होती थी 
बहुत सी  चाकलेट​
मेरे कबर्ड में 
स्टडी टेबल की ड्रा में
जैकेट की जेब में  
कॉलेज के बैग की 
साइड वाली पॉकेट में 
स्कूटर की डिक्की में 
स्वप्नीले से रैपर वाली 
चॉकलेट्स
पता नहीं क्यों 

वो 
उन दिनों की बात थी 

चाकलेट खरीदे
जमाना हो गया अब 
ये इन दिनों की बात हैं 

हरीश भट्ट

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