...वो रात
नई "नवेली", सकुचाई सी
मधुमय "चाँद"
...उतावला सा
खिड़कियों के पार कहीं ..!
नई "नवेली", सकुचाई सी
मधुमय "चाँद"
...उतावला सा
खिड़कियों के पार कहीं ..!
..चूड़ियों की
भरपूर "छनक" में ,,
स्वप्नीली आँखों की लरज में
..सांसों के आवर्तन में ,,
"रात रानी" सी
"महकती" रही
...वो रात..!!
भरपूर "छनक" में ,,
स्वप्नीली आँखों की लरज में
..सांसों के आवर्तन में ,,
"रात रानी" सी
"महकती" रही
...वो रात..!!
..""घूंघट""
..न जाने कब
"सरक" गया था
..."होले" से..!!!
..न जाने कब
"सरक" गया था
..."होले" से..!!!
...हरीश.....
No comments:
Post a Comment