कई पीड़ियाँ गुजर गई पर सबकी सब अभिशिप्त हो गई !
दुशाशन कि वंशावलियाँ, फिर चीरहरण में लिप्त हो गई !!
इस देश का ये दुर्भाग्य कहूं या, अकर्मण्यता अपनों कि !
हर विकास की कीमत पर बस, संवेदनाएं रिक्त हो गई !!
दुशाशन कि वंशावलियाँ, फिर चीरहरण में लिप्त हो गई !!
इस देश का ये दुर्भाग्य कहूं या, अकर्मण्यता अपनों कि !
हर विकास की कीमत पर बस, संवेदनाएं रिक्त हो गई !!
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