Monday, June 27, 2016

यूं न कह पाओगे तुम !

सुनो..
यूं न कह पाओगे तुम !
.....हर बार ही
चाहतों को
मुट्ठी में दबाये
रेत की तरह
.....फिसलने मत दो !
किसी दिन
मोह के आँचर पर
समृतियों की तूलिका से
एहसासों की शियाही से
.....उकेर लेना सस्नेह ही
कामनाएं,/आकांक्षाएं /इच्छाएं
और उस पर
......लरज़ते होंठों से
बिखेर देना चाहतों का इत्र !
लिख देना एक ख़त
कंपकपाते हाथों से
.......और भेज देना
हवाओं के रुख पर
बिना पता लिखे
......बैरंग ही !
ये तितरियाँ
.......सहचर हैं मेरी
पहुचा ही देंगी
.....मुझ तक !!
.....हरीश....

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