Sunday, June 12, 2016

"कोई फूल बन के खिलो कभी,कभी तितलियों सी उड़ो ज़रा "



दोस्तों बेखयाली का एक गीत आपकी नज़र हैं ...अगर पसंद आये तो जताइयेगा जरूर........
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कोई शाम यूं भी तो हो जरा, मेरा हाथ थामे चलो जरा !
जो मैं हसूं तो,, हसों जरा,, जो मैं रुकूं तो,,रुको जरा !!


मैं पहर.. पहर,,, रहा देखता !
तू नज़र में थी किसी और की !!
मेरी हसरते,,, तेरे नाम थी !
तेरी शोखियाँ किसी और की !!
जैसे सबसे मिलते हो शौक से मेरे साथ भी तो खुलो जरा !
कोई शाम यूं भी तो हो जरा,,, मेरा हाथ थामे चलो जरा !!

मैं भंवर.. भंवर,, रहा डूबता !
तू लहर लहर में समायी थी !!
मुझे साहिलों की तलाश थी !
तूने मौजों से ही निभाई थी !!
तेरा रास्ता हैं अलग मगर,किसी मोड़ पर तो मुड़ो जरा !
कोई शाम यूं भी तो हो जरा, मेरा हाथ थामे चलो जरा !!

तुम दूर हो के भी,,, पास हो !
कभी तो मिलोगी ये आस हो !!
तुम्हें पाया मैंने,, यकीन मैं !
मेरी उम्र भर की,, तलाश हो !!
यूं ही तुमसे कहना हैं कुछ मुझे मेरे पास आ के सुनो जरा !
कोई शाम यूं भी तो हो जरा,,, मेरा हाथ थामे चलो जरा !!

तू ग़जल में हैं, तू ही गीत में !
मेरी हार में,,, मेरी जीत में !!
कभी वेदना, किसी नज़्म की !
कभी पहली पहली सी प्रीत में !!
कोई फूल बन के खिलो कभी कभी तितलियों सी उड़ों जरा !
कोई शाम यूं भी तो हो जरा,,,,, मेरा हाथ थामे चलो जरा !!
जो मैं हसूं तो,,, हसों ज़रा ,,,, जो मैं रुकूं,,, तो रुको जरा !!
.............हरीश............

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