Monday, June 27, 2016

कुछ पंक्तियाँ ...बस यूं ही

कभी लगता हैं..
तुम सारा ज़माना ढूंढते हो...
यूं ही कुछ गुनगुनाने को, 
सुहाना सा
तराना ढूंढते हो...
ज़रा सी बात हो पाए..
किसी ख़त में ...या फिर छत में
......................बहाना ढूढ़ते हो..😄
चले आते हो छुप छुप के,
मेरी नज़्मों के हर्फों तक..
सुनो न तुम... 😯
...............बताओ तो ...
अभी तक भी ....
क्या तुम मुझमें ...
वो अपना सा... फ़साना ढूंढते हो ??!!

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