Sunday, December 10, 2017

लघु - कथा

रूम न. 8 का पेशेंट...
अचानक आंख खुली थी शायद या नींद ही नही आई थी बस चेतना लौटी थी पता नही
कमरे में नाइट बल्ब का पीलापन था तो पता चला रात हैं शायद ....साइड में लगी मशीन लगातार बीप कर रही थी इसीसे पता चल रहा था की दिल धड़क रहा हैं यानी आदमी जिंदा हैं... हल्की सी ठंडक हो चली हैं ...बाहर अंदर पूरी तरह सन्नाटा... पिछले कुछ दिनों से नाम तो जैसे गुम सा गया हैं रह गया हैं तो बस "रूम न. 8 का पेशेंट"... दवाइयों का कैसेलापन साँसों में भभक रहा हैं
जिस्म महसूस नही हो रहा...एक हाथ सूज गया हैं लगातार चल रहे आई वी की निडल से
बैठने का मन था पर उठने की हिम्मत नही थी पहली बार महसूस हो रहा था कि अपना शरीर इतना भारी भी होता हैं कि हाथ भी न उठा सकें...
मौत का एक दिन मुअय्यन हैं
नींद क्यों रात भर नही आती
ग़ालिब की ये चिंता बेवजह नही रही होगी
उठने की कोशिश में बेड चरमराया तो पास लेटे बेटे की आंख खुल गई कच्ची नींद में होगा या फिर खटका होगा तभी उठ गया
पापा क्या हुआ आप लेटे रहिए ...बेटा कितने बजे हैं बांकी लोग कहाँ हैं जरा सा ये बेड का सरहाना उठा दे थोड़ी देर बैठूंगा मैंने कोशिश करके कहा
बेटे ने बेड को जैक लगा कर उठा दिया फिर मोबाइल में टाइम देख के बताया 12:30 बजे हैं और सब लोग घर गए हैं आज छोटी दीवाली हैं न पूजा का सामान वगैरा खरीदना था
दीवाली ...इतनी जल्दी ..अभी कल तो करवा चौथ थी
याद करने की कोशिश में सोचा मैने ...
तू नही गया पटाखे लेने...यूँहीं ही पूछ लिया मैंने
नही ...मन नही हैं रोशनी के लिए लड़ियाँ लगा दी थी सुबह ..आंख भर देखा था मैंने उसे मन नही के जवाब पर
पर दुनियादारी तो निभानी ही हैं साल भर की दीवाली जो हैं हॉस्पिटल का क्या हैं वो तो आना जाना सा हो गया हैं
मेरा मोबाइल कहाँ हैं ..दे तो जरा
यही हैं पापा मेरे पास पर आप आराम करो मम्मी ने कहा हैं में काल अटेंड कर लूंगा ....आपके ऑफिस के सभी काल में ही अटेंड कर लेता हूँ
दिखा तो जरा ...मम्मी को मत बताना..वैसे भी नीद नही आ रही कोई इम्पोर्टेन्ट मेल या मेसेज तो नही था बेटे से मोबाइल लेते हुए कहा मैंने
काल लॉग और मैसेज देखे पिछले कई दिन के मैसेज नोटिफिकेशन मेल्स भरा बैठा था मोबाइल जैसे
धनतेरस दीवाली के शुभकामना संदेश ऐसे ही तो भेजता रह हूँ मैँ भी बिना जाने की पढ़ा गया या नही अच्छा सा लगा कि कुछ लोग के होने न होने से फ़र्क़ पड़ता हैं शायद
पापा कल दीवाली हैं सुबह डाक्टर ने कहा हैं घर जाना चाहो तो जा सकते हैं चलोगे क्या
घर ...पीली रोशनी में भी उसकी आँखों में चमक थी उसी से पता चला कि कई दिन हो गए शायद घर से अलग
पापा ...आप सो जाओ न
तू सो जा बेटा मुझे नींद आएगी तो सो जाऊंगा
जब तक आंख खुली हैं जीने का भरम हैं वरना तो क्या पता आंख खुले ही नही
ठंडक गहराती रात के साथ बढ़ गई हैं चेतना पूरी तरह से लौट चुकी हैं तभी याद आ रही हैं सब बातें
हां कल घर चले जायेंगे दीवाली जो हैं फिर न जाने कब आये न आये
बेटे को नींद आ गई थी शायद इत्मीनान हो चला था उसे इसलिए नींद भी गहरा गई थी उसकी
...हरीश ...

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