Sunday, December 10, 2017

विधाता छंद

विधाता छंद ...

कभी तो पास बैठो तुम,, कभी तो मुस्कुराओ तुम !
जिसे अपना समझ लू मैं, कभी वो गीत गाओ तुम !!
मुझे तुमसे मुहब्बत हैं, .....तुम्हें भी हैं यकीनन ही !
ज़रा कांधे प् सर रख दो, ..ज़रा नजरें मिलाओ तुम !!

हरीश भट्ट

द्वितीय प्रयास

किनारों को नहीं मिलना, लिखा था मिल न पाये हम !
कदम दो चार भी हमदम, सहज ही चल न पाये हम !!
तिमिर था दूर तक पसरा, ....उजाले साथ थे लेकिन !
हवाएं तेज थी इतनी, .....दिये सा जल न पाये हम !!
हरीश भट्ट

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