Sunday, December 10, 2017

तरही मिसरा-- नज़र को झुका कर तेरा मुस्कुराना।

122 122 122 122
तरही मिसरा--
नज़र को झुका कर तेरा मुस्कुराना।

सुनो अब चलेगा,.. न कोई बहाना ।
कहानी न कोई, ..न कोई फ़साना ।।

बहुत दूर तक साथ..... देता नही हैं ।
बहुत बेवफा हैं, ये जालिम जमाना ।।

पुराना शज़र कट गया, साल पहले ।
चलो और ढूढे, .नया अब ठिकाना ।।

तुम्ही जब चले आए महफ़िल से उठकर ।
तभी में भी निकला खिरामा खिरामा ।।

मिरी जान ले जाएगा, ये किसी दिन ।
नजर को झुका कर, तेरा मुस्कुराना ।।

कई दिन से गुम हैं, तुम्हारी हसीं भी ।
तुम्हें हो पता तो, ...मुझे भी बताना ।।

मुझे याद हैं आज भी, ..वो तुम्हारा ।
बहाने बना कर, मिरी छत पे आना ।।

ज़रा पास बैठो, ...ज़रा मुस्कुराओ ।
तुम्हें इक ग़ज़ल, चाहता हूँ सुनाना ।।

हरीश भट्ट

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