Sunday, December 10, 2017

तरही गजल

न वो जला ही लगे हैं, न वो बुझा ही लगे !
अजीब पेड़ हैं पतझड़, में भी हरा ही लगे !!

तेरे शहर से चला हूँ तो, बेवज़ह भी नहीं !
तेरे शहर की फजां में ज़हर भरा ही लगे !!

तेरी ख़ुशी के लिए रोज,, मांगता हूँ दुआ !
ये और बात हैं तुझको वो, बद्दुआ ही लगे !!

वो रात भर था मेरे साथ, इश्क में शामिल !
सुबह को ऐसे वो बदला की, दूसरा ही लगे !!

मैं उसको राम कहूं, और तुम कहो रहमान !
किसी नजर से भी देखो, खुदा खुदा ही लगे !!

मुझे चेहरों के बदलने से, सख्त नफरत हैं !
मैं चाहता हूँ ख़फ़ा हो तो वो, ख़फ़ा ही लगे !!

मेरा हर दर्द मेरे अशआर में, मिलेगा तुम्हें !
ये लाज़मी तो नहीं हर जख्म भी हरा ही लगे !

मैं इस अंजाम पर अब खुद को रोक लेता हूँ​ !​
न जाने कब तुझे किस बात का बुरा ही लगे ​!!

हरीश भट्ट ​

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