बस यूं ही झिलमिल, आँखों से हँसता हूँ!
उस ख़त के कुछ पन्ने, जब भी पढता हूँ.!!...
बोझिल से दिन, तन्हां रातों को लिखती थी !
बचकानी सी कुछ बातें जो, तुम लिखती थी !!
सपनीले ख्वाबों कि बातें, लिखती थी तुम !
जागी आँखों के सपने भी, तुम लिखती थी !!
अब तक इन आँखों में, उनको ही घढ़ता हूँ !
उस ख़त के कुछ पन्ने, जब भी पढता हूँ...!!.
अपना नाम कहीं कहीं पर, कम लिखती थी !
मेरा नाम बढ़ा सा लेकिन, तुम लिखती थी !!
कविताये और नज्में भी,, लिखती थी तुम !
गालीब, मीर, मजाज भी, तुम लिखती थी !!
कैसे थे सपनीले दिन, अब सोचा करता हूँ !
उस ख़त के कुछ पन्ने,.. जब भी पढता हूँ...!!.
चिड़ियों कि बाते चटकीली, तुम लिखती थी !
तितली कि इतराहट पर भी तुम लिखती थी !!
बीते कल कि सब बातें भी,लिखती थी तुम !
आज नहीं आओगी ये भी, तुम लिखती थी !!
याद न जाने तुम्हे आज भी.. क्यों करता हूँ !
उस ख़त के कुछ पन्ने,.. जब भी पढता हूँ...!!.
कब रूठे कब मान गए, ये भी लिखती थी !
पल पल के झगड़ों को भी, तुम लिखती थी !!
कल क्या पहनू ये लिख के, पूछा करती थी !
मैंने क्या पहना था ये भी, तुम लिखती थी !!
मन का खाली सूनापन, अब यूंही भरता हूँ !
उस ख़त के कुछ पन्ने,.. जब भी पढता हूँ. !!
जीने और मरने कि कसमे, तुम लिखती थी !
राधा कि भी प्रीत कि रस्मे, तुम लिखती थी !!
शायद हम ना मिल पाएंगे, लिखती थी तुम !
शीरी और फरहद के किस्से, तुम लिखती थी !!
अन्धियाले सन्नाटों से मैं ..अब भी डरता हूँ !
उस ख़त के कुछ पन्ने,.... जब भी पढता हूँ. !!
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