Tuesday, January 7, 2014

तुम क्या गए.......


तुम क्या गए की आस का मधुमास विस्मृत हो गया !
संवाद संक्षिप्त से रहे  औरसंताप विस्तृत हो गया !!
दग्ध अधरों के प्रश्नों का उत्तर, मैं भला देता भी क्या !
झूठ की  उस परिकल्पना में..,,सत्य वर्जित हो गया !!

दो चरण भी साथ ले कर, क्यों चल सके ना सार्थ तुम !
नीतिगत प्रतिबद्धता में, क्यों बंध  सके ना पार्थ तुम !!
क्या मैं   अर्पित  चाहता था....क्या  समर्पित हो गया !
झूठ की  उस परिकल्पना में.…सत्य वर्जित हो गया !!

तुम कहो तो पूर्व अर्जित पुण्य........ तुमको सौंप  दूं  !
चिर प्रतीक्षित कामना का......... हेतु तुमको सौंप दूं !!
क्यों कहो मधुमास का अवसर.... विसर्जित हो गया !
क्या मैं  अर्पित  चाहता था... क्या  समर्पित हो गया !!

क्या पता था परिहास भी यूं अक्षरश  शिरोधार्य  होगा !
अनमना प्रतिकार तुमको ....सहज ही स्वीकार्य होगा !!
भाव जो समभाव  में  था, क्षण भर मैं वर्गित  हो गया !
झूठ की  उस परिकल्पना में.…सत्य वर्जित हो गया !!



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