मिल ही जाएगा
नब्ज दर नब्ज की
हरारतों को
विराम भी !
हरारतों को
विराम भी !
छट ही जायेगा
वक़्त
बेवक्त की
उम्मीदों का धुधलका ,
छट भी जायेगा
सीने में अटका
वर्षों से पसरा
अनमना सा गुबार भी !
कम हो ही जाएगी
हथेलियों की
रक्तिम तपिश ,
छू पाने की हसरत भी
विस्मृत नहीं कर पायेगी
अब
छू पाने की हसरत भी
विस्मृत नहीं कर पायेगी
अब
तारों के टूटने की झलक !
देर तलक
टकटकी के लिए
डूब ही जायेगा
झूठी तसल्लियाँ
देने मैं माहिर
सूरज ,
हमेशा के लिए
देवदार के
टकटकी के लिए
डूब ही जायेगा
झूठी तसल्लियाँ
देने मैं माहिर
सूरज ,
हमेशा के लिए
देवदार के
पेड़ों के पीछे !
अब न भरमायेगा
क्षितिज का
वो सम्मोहन ,
मिलने न मिलने का
........
आज
मैंने तुम्हारा
आंखरी
ख़त भी
जला जो दिया हैं
........
अब उस
दराज में
खाली लिफाफे सा
ठहरा हुआ हूँ
बिना
पता लिखा हुआ
मैं........
केवल मैं..!!
........
आज
मैंने तुम्हारा
आंखरी
ख़त भी
जला जो दिया हैं
........
अब उस
दराज में
खाली लिफाफे सा
ठहरा हुआ हूँ
बिना
पता लिखा हुआ
मैं........
केवल मैं..!!
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