""कविता""...... कविता उस पहाड़ी झरने के पानी की तरह से हैं निष्कपट,निश्छल,पारदर्शी, जिसमे से झाँक कर कवि की भावनात्मकताए देखी जा सकती हैं कविता,गीत या ग़ज़ल एक मनः स्थिति हैं भाव का रूपांतरण हैं एक अलग ही दृश्यांतरण हैं कभी कभी तो इस संसार से परे एक संसार रच लेता हैं कवि रचना तो स्वयंभू हैं स्वरचित.. ये तो ईश्वरीय प्रबलता हैं जो उसके मस्तिस्क की गहराइयों मैं जन्म लेती हैं हृदय के तारों को झंकृत करती हुई मुख के सप्त सुरों पर अवरोहण करती हुई कलम के माध्यम से उभर आती हैं वरकों पर
Friday, March 29, 2013
मैं तो मुसाफिर हूँ ....
मैं तो मुसाफिर हूँ हमेशा लहरों में रहूँगा !
तुम सुमन सम साथ साहिल के चलोगी !!
मैं तो नीरव सा सघन.... वन वन रहूँगा !
तुम सुहासित उश्मिता के... संग चलोगी !!
इस सुलगती वसुधरा कि प्यास भी तुम !
इस धरा पर प्रणय का मधुमास भी तुम !!
तुम बरसती भाद्र कि..... हर आद्रता में !
ज्येष्ठ कि मृदु धूप का आभास भी तुम !!
में तो चातक हूँ सघन.... घन घन रहूँगा !
तुम अहर्निश रश्मिता के.. संग चलोगी !!
तुम क्षितिज की, रक्तिमम लावण्यता में !
तुम शिशिर की, चंचलित हर व्यस्तता में !!
ओस की कोंपल पे झिलमिल धूप जैसी !
श्वेत संदल सी... खनकती ज्योत्स्ना में !!
मैं तो याचक हूँ नमित ...कण कण रहूँगा !
तुम सुभाषित अस्मिता के..संग चलोगी !!
निशदिन शुभेच्छित हो नया संसार तुमको !
मुझसे निश्छल स्नेह का,..आभार तुमको !!
तुम न चाहो तो तुम्हें, याद आऊं मैं कैसे ?!
हैं स्मृतियों से मिटने का अधिकार तुमको !!
मैं तो त्यज्यित हूँ, भ्रमित क्षण क्षण रहूँगा !
तुम मधुरमित शुश्मिता के, संग चलोगी !!
मैं तो मुसाफिर हूँ हमेशा लहरों मैं रहूँगा !
तुम सुमन सम साथ साहिल के चलोगी !!
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