Monday, September 12, 2011

कोई तआल्लुक न वास्ता रखना

 
कोई तआल्लुक न वास्ता रखना
बस, गुजरने का रास्ता रखना !!

लब पे चाहे न आ सके फिर भी

दिल में छोटी सी, दास्तां रखना !


रोज़ एक चाँद सा मिले  छत पे

खुद को हमसे यूं, आशना रखना !


गर जमीनों से की मोहब्बत हो

दफ्न आखों में, आसमां  रखना !
 
हमसफ़र हो न हो मिले न मिले
साथ यादों का, कारवां रखना !!
 
रोज मिलने न आ सको तो भी
एक ख़त का
तो सिलसिला रखना !
 


4 comments:

  1. Wooooooow loved reading this
    एक बार पढ़ा फिर पढ़ा फिर से पढ़ा फिर फिर फिर पढ़ा बार बार पढ़ा और जब जब पढ़ा काफी अच्छी लगी रचना बिलकुल दिल को छूती हुई सी गज़ब की फीलिंग है इस रचना में I cant explain but this is simply gr8 amazing wonderful mindblowing just superb

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  2. साथ यादो का कारवां रखना..... बहुत बहुत खुबसूरत ग़ज़ल.....

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  3. kya baat hai..har baar ki tarah lajawaab

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