उम्र की देहरी
पर
दस्तक देती
अनमनी साँझ की
आंखमिचोली
अधपके घुंघराले
बाल
बिंदी टीकोली
क्या खूब
फब्ती हैं तुम
पर !
आँखों मैं सजाये
कुछ मखमली ख्वाब
अस्मिता का बंधन
हर्ष जनित अश्रु
मुस्कान हसीं
क्रंदन
मेरे ही इन्तजार
में न !
देख लेना
लौटा रहा हूँ
खुद को
पहुच ही जाऊंगा
तुम्हारे हाथों
की
लकीरों के
मिटने से पहले
एक बात कहूं
चिरयौवना ही तो हो तुम
सदैव ही
हो भी क्यों न
मां भी कभी
बूढी होती हैं
भला !!
,,...हरीश भट्ट ,,,..
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