Friday, January 14, 2011

स्त्री होने का सुख

दोस्तों आप सभी के मध्य सीमा जी की एक रचना रख रहा हूँ "स्त्री होने का सुख" सीमा जी जो  मेरी मित्र होने के साथ साथ मेरी धर्मपत्नी भी हैं 




स्त्री होने का सुख 

अपनत्व से स्रिजत्व की
परिणिता से मातृत्व की  
परिभाषाए स्वीकारते, स्वीकारते
देखती थी जब,
तो गर्व होता था
स्वयं के होने को
स्त्री का,

किंतु आज
जब मैं खोजती हूँ
हर स्त्री मैं
नैसेर्गिक सुंदरता
करुणा-शील-धेर्य का स्पंदन,
तो पाती हूँ
एक कृत्रिमता
निर्जीव सी तस्वीर नज़र आती हैं
अर्धनग्न ओर कुत्सित भी,
सोचती हूँ
समानता का अधिकार
पुरुष से मेरा संबल हैं
या मेरा विकार,
मैं तो श्रेष्ठा थी
दिग दिगान्तर से,
पूज्‍यनीय भी
पुरुष द्वारा ओर
समाज द्वारा भी,
ओर समानता का 
ये अधिकार भी कैसा
बस मैं सीट ओर टिकट  
प्राप्त करलेने भर जेसा,
शारीरिक हो केवल
बौद्धिक ना हो जैसे,

समानता तो तब हैं की
मैं बस स्टाप से अकेले
घर तक आ पाऊ
बिना किसी की
चुभती आँखो का सामना किए ,
जब मैं चुन सकु अपना सत्व
सामाजिकता की परिधि मैं,
चुनाव ही तो हैं
हे राम !!
सीता होने का दर्शन
तो तुमने मुझे दिया था
पर उर्मिला होने का धेर्य तो
मैने खुद ही चुना था,

ओर मेरे लिए तो
ये भी बहुत हैं
की वो कहें किसी दिन

प्रिय
आज तुम उनिग्ध सी हो
.
उठों मत
.
रहने दो !!!
.
लो ...
आज
चाय
मैने बनाई हैं ...........!!!!


8 comments:

  1. बहुत सुन्दर रचना.......... सीमा जी को शुभकामनाएं और प्रणाम भी.

    नये दशक का नया भारत ( भाग- २ ) : गरीबी कैसे मिटे ?

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  2. बहुत सुन्दर रचना| मकर संक्रांति की भी हार्दिक शुभकामनायें|

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  3. yah rachna to pahle bhi padhi thi maine jab seema ji ne ek community mein post ki thi us waqt bhi achi lagi thi aaj thoda jyada pasand aayi

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  4. waise to puri rachna vicharniye hai par antim pankti mein hasya ras bhi hai sabse mast hai wah pankti sirji

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  5. क्या बात है , सबसे पहले तो आपका आभार कि आपने इतनी लाजवाब रचना उपलब्ध करवाई , सच में इस रचना ने युग-युगांतर की सच्चाई उकेर कर रख दी है ।

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  6. sunder ..sach ko achchi tarah byaan kiyaa

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  7. VISMIT SA PADHA .HARISHJI HO SAKTA HAI YE BHAVNAON KA ATIREK HO TATHAPI YE PRERAK BHI HAI AUR PATHNIYA BHI.AAPSE JUDAV GARV KA VISHAY HAI.
    SADHUVAD.
    MUDIT VIKAL

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