वो ऊँचे ललाट पर
कमान सी भोंहों के
मर्म में,
मर्म में,
सुर्ख तप्त गोलाईयां लिए
असीमित परिधि का
विस्तार लिए,
मुझे बैचेन सी
कर देती हैं
प्रलोभन सी लगती
निमंत्रित सी करती हुई
पास आने को
आमंत्रित सी करती
अधरों को छू लेने को.........
तेरे माथे की
वो बिंदिया !
नज़रों को मिलाते हुए
एक टक देखती हैं मुझे
तुम्हारे
सम्पूर्ण व्यक्तित्व पर
एक छत्र राज लिए
कुसुमित चेहरे को
अप्रतिम सौन्दर्य से
भर देती हैं
तेरे माथे की
वो बिंदिया !
जब तुम्हारा चेहरा
मेरी हथेलियों मैं होता हैं
उस कसमसाहट में
लरजते होठों में
रक्तिम कपोलों में
सांसों के उतार चड़ाव में
पलकों के
उनीदेपन में
सुर्ख होते कर्ण फलकों में
ताम्बई होती त्वचा में
दीर्घ होते श्वाशकण
जब
चेहरे को छूने लगते हैं
शरीर का सम्पूर्ण रक्त
जब चेहरे की तरफ दौड़ता
सा लगता हैं
तब भी
मुह चिड़ाती सी रहती हैं
तेरे माथे की
वो बिंदिया !
..वो पूनम का चाँद,
.....रात को खाने की थाली,
........घर का आइना,
...........गेंदे के फूल,
.............चाट वाले की टिक्की,
.................ऑफिस का पेपरवेट,
.........................ट्रेफिक सिंग्नल की लाइट,
सब तेरी
बिंदिया की
याद दिलाते हैं मुझे !
उफ्फ्फ!!!!!!
आज फिर
मेरे काँधे से चिपक कर
आ गई हैं
तेरे माथे की
वो बिंदिया .........!!
निमंत्रित सी करती हुई
पास आने को
आमंत्रित सी करती
अधरों को छू लेने को.........
तेरे माथे की
वो बिंदिया !
नज़रों को मिलाते हुए
एक टक देखती हैं मुझे
तुम्हारे
सम्पूर्ण व्यक्तित्व पर
एक छत्र राज लिए
कुसुमित चेहरे को
अप्रतिम सौन्दर्य से
भर देती हैं
तेरे माथे की
वो बिंदिया !
जब तुम्हारा चेहरा
मेरी हथेलियों मैं होता हैं
उस कसमसाहट में
लरजते होठों में
रक्तिम कपोलों में
सांसों के उतार चड़ाव में
पलकों के
उनीदेपन में
सुर्ख होते कर्ण फलकों में
ताम्बई होती त्वचा में
दीर्घ होते श्वाशकण
जब
चेहरे को छूने लगते हैं
शरीर का सम्पूर्ण रक्त
जब चेहरे की तरफ दौड़ता
सा लगता हैं
तब भी
मुह चिड़ाती सी रहती हैं
तेरे माथे की
वो बिंदिया !
..वो पूनम का चाँद,
.....रात को खाने की थाली,
........घर का आइना,
...........गेंदे के फूल,
.............चाट वाले की टिक्की,
.................ऑफिस का पेपरवेट,
.........................ट्रेफिक सिंग्नल की लाइट,
सब तेरी
बिंदिया की
याद दिलाते हैं मुझे !
उफ्फ्फ!!!!!!
आज फिर
मेरे काँधे से चिपक कर
आ गई हैं
तेरे माथे की
वो बिंदिया .........!!
बहुत ही खुबसूरत और कोमल भावो की अभिवयक्ति....
ReplyDeleteबहुत सुंदर . बिंदिया के प्रतीक दिनचर्या में भी, वाह !!! नया प्रयोग.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव लिए अच्छी प्रस्तुति ..
ReplyDeleteapni si lagi...........bahut khub
ReplyDeleteVery Nice post our team like it thanks for sharing
ReplyDeleteशुक्रिया शुषमा जी
ReplyDeleteआभार
बहुत धन्यवाद निगम साहब
ReplyDeleteआकृतियों के प्रतिबिम्ब जहन में यूं ही उभर आते हैं ..सम्मोहन सा हो जैसे
बहुत शुक्रिया संगीता जी
ReplyDeleteशब्द समर्थन हेतु
आभारी हूँ अनु जी
ReplyDeleteये तो भावों कि रीत हैं कभी अपने से लगते हैं कभी पराये से
शुक्रिया बहुत
Bollywood news Thanks to you and your team
ReplyDeletevery nice
ReplyDeleteअति सुंदर
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