गाँधी...
गाँधी नाम का विचार
६२ वर्ष पहले नहीं
और न ही किसी
गोडसे ने
न ही किसी
धर्मान्धता ने
न ही किसी
सामाजिकता ने
न अस्त्र ने न शस्त्र ने
किसी ने नहीं मारा था उसे तब
वो तो एक जर्जित काया
विपन्न तन से
अलग हुआ था केवल
किन्तु
उसे मारा हमने
और रोज मार रहे हैं
हाँ....
रोज मर रहा हैं गाँधी
अपने ही देश में
रोज अविग्यित हो रहा हैं
रोज अविनयित हो रहा हैं
अपने ही देश में
विचारों का तिलान्जलन
ओर आदर्शो का तर्पण
नियति बन चुकी हैं इस देश की
हाँ ...नियति
राष्ट्रपिता सा शब्द
गाली सा लगने लगा हैं
और ....
और तुझे तो मरना ही था
मोहन दास करमचंद गाँधी
ये कृतघ्नों का देश हैं
गोली से नहीं मरता
तो शर्म से तो
कब का मर ही जाता
कब का
रोज पानी पी पी कर
कोसती नई पीढ़ी
और भ्रष्ट कार्यप्रणाली को
आत्मसात किये
देश के दोगले कर्णधार
रोज ही तो कर रहे हैं
श्राद्ध गाँधी का
सही ही हैं
कलयुग का पराकाष्ठ
यही हैं शायद
जब घर वाले
अपने बूढ़े लाचार बाप को नहीं छोड़ते
तो बापू तुझे क्या छोड़ेंगे
बस !!??
करो माल्यार्पण
चाय काफी मंगवालो
गान्धित्व का ग भी न जानने वाले
झाड़ रहे हैं भाषण
और फिर
पुण्यतिथि दिवस का
बजट भी तो ठिकाने लगाना हैं
Hmmmm kafi vicharniye rachna hai vakai gandhivadi kahlane wale log bhi kanhaa apna rahe hain gandhi ki kahi baton ko mahaj dikhawa rah gaya hai sab.......
ReplyDeletekuch gine chune logon ke manne se bhi kya ho jayega? unka kahna tha ki koi ek tamacha mare to dusra gaal aage kar do isse saamne wale ka hruday parivartan hoga par ab to sabhi int ka jawab patthar se dene par tule hain par ab bhi kuch log to hain unko manne wale bhi
(Apni kahun to main to manti hun unki baton ko completely nahi par manti hun bahut hadd tak hahahahaha)
harish bhai...aaj aapka ye blog khoj hi liya...aur aate hi dil khush ho gaya ...
ReplyDeleteउत्कृष्ट रचना हरीश जी
ReplyDeleteगाँधी एक विचार हैं बहुत कुछ दिया हैं इसने
सचमुच हताशा होती हैं कभी कभी
बधाई आपको
इस रचना पर
उत्कृष्ट रचना ..
ReplyDeleteचर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 01- 02- 2011
ReplyDeleteको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.uchcharan.com/
रचना मन को छू गई
ReplyDeleteसच है आज गाँधी की विचारधारा को मानने वाले विरले ही हैं
आज हम उन की सोच को ग़लत साबित करने पर ततपर हैं
आप ने मन के उद्गार बहुत सफलतापूर्वक प्रकट किये हैं
बधाई
बहुत सटीक और यथार्थपरक रचना..दिल को छू गयी..बहुत सुन्दर
ReplyDeleteउत्कृष्ट और प्रासंगिक रचना .... बहुत सुंदर
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