तुम क्या गए की आस का मधुमास विस्मृत हो गया !
संवाद संक्षिप्त से रहे और, संताप विस्तृत हो गया !!
दग्ध अधरों के प्रश्नों का उत्तर, मैं भला देता भी क्या !
झूठ की उस परिकल्पना में..,,सत्य वर्जित हो गया !!
दग्ध अधरों के प्रश्नों का उत्तर, मैं भला देता भी क्या !
झूठ की उस परिकल्पना में..,,सत्य वर्जित हो गया !!
दो चरण भी साथ ले कर, क्यों चल सके ना सार्थ तुम !
नीतिगत प्रतिबद्धता में, क्यों बंध सके ना पार्थ तुम !!
क्या मैं अर्पित चाहता था....क्या समर्पित हो गया !
झूठ की उस परिकल्पना में.…सत्य वर्जित हो गया !!
तुम कहो तो पूर्व अर्जित पुण्य........ तुमको सौंप दूं !
चिर प्रतीक्षित कामना का......... हेतु तुमको सौंप दूं !!
क्यों कहो मधुमास का अवसर.... विसर्जित हो गया !
क्या मैं अर्पित चाहता था... क्या समर्पित हो गया !!
क्या पता था परिहास भी यूं अक्षरश शिरोधार्य होगा !
अनमना प्रतिकार तुमको ....सहज ही स्वीकार्य होगा !!
भाव जो समभाव में था, क्षण भर मैं वर्गित हो गया !
झूठ की उस परिकल्पना में.…सत्य वर्जित हो गया !!
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