जाने वो कैसे
लोग थे, किस जहाँ के थे !
सुनते हैं की
किरदार, तेरी दास्ताँ के थे !!
कुछ लोग मुसाफिर
की तरह रह गए यहाँ !
जाने कहाँ से
आयें हैं, जाने कहाँ के थे !!
कुछ थे तेरे
करीब, किसी के करीब तू !
हम लोग तो बेसबब, यूंही रायगाँ के थे !!
अब भी बचे हुए
हैं, वो किस्से बाजार के !
वो पल तो खो गए
जो कभी दरमियाँ के थे !!
ये तो किरायेदार थे, इनका यकीन क्या !
मेरे मका के थे न .....तुम्हारे मका के थे !!
उसने तो हमेशा
ही मोहब्बत से बात की !
मैंने ही हर्फ़
हर्फ़ जो लिखे... गुमाँ के थे !!
तेरे शहर में
रौनके, दिखती हैं अमूमन !
कुछ घर मगर बगैर
किसी शामियाँ के थे !!
मिलता नहीं हैं बज्म में, खुद सा कोई मुझे !
कुछ लोग इस जमी
के न इस आसमां के थे !!
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