आत्मज मेरे
जब मैं
किसी रोज़
नही रहूंगा
तुम्हारे बीच
जब थम जाएगा
सांसों का ये अतृप्त सफर
और बोझ लगने लगेगा
ये बेजान शरीर
जान छिड़कते थे
जिस पर तुम
जब यकायक ही
सौंप दोगे अग्निदाह हेतु
मेरे समूचे जिस्म
मेरे व्यक्तित्व को
मिटा दोगें
मेरे होने न होने को भी
तब
मुझे भूलने और याद करने की
कशमकश में
मत याद करना
मेरी कमजोरियों को
नाकामियों को
और मेरी
रुसवाइयों को
चर्चा मत करना
मेरी बुरी आदतों
दखलंदाजियों
बहस बाजियों
और तल्खियों का
मेरी बेवफाई
और खुद्दारीयों का
महसूस मत करना
मेरी चुप्पियों
तन्हाइयों और तीरगी को
मेरी बेकसी, बेबसी
मशरूफियात,
और संगदिली को
मत पूछना
की क्यों था
तीक्ष्ण दृष्टिकोण
और सख्त लहजा
बेस्वाद बेमज़ा
बिखरा हुआ रेज़ा रेज़ा
मत कोसना
मेरे इकतरफा फैसलों
मेरी नासमझी
मेरी आवारगी और
त्रासदी को
मत तराशना
मेरी ख़ुदपरस्ती
और बेखुदी को
यूं तो मुझमें
याद रखने लायक
सहेजने लायक
कुछ भी नही
फिर भी
मेरा नाम आ जाये
जुबां पर
तो रोकना नही
मेरा ख्याल
आ जाए जहन में
तो झटकना नही
मेरी कविता
आ जाए किसी पन्ने पर
तो पलटना नही
मैँ रहूं न रहूं
तुम मुझको
जिंदा रखना
खुद में
की चलो आदमी
सच्चा तो था
भले ही अच्छा न था
हरीश भट्ट
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