नमस्कार दोस्तों ..शुभ संध्या
बहुत दिनों के बाद मुखातिब हूँ एक पुरानी रचना के साथ.....
जब तुमसे ..सम्बंध नहीं थे !
पीड़ा से ...अनुबंध नहीं थे !!
रचनायें थी, बिल्कुल कोरी !
उनमें लय और छंद नहीं थे !!
जब तुमसे ..सम्बंध नहीं थे !
पीड़ा से ...अनुबंध नहीं थे !!
सांसें इतनी ...तिक्त नहीं थी !
नजरें भी ..संदिग्ध नहीं थी !!
नींद बहुत अच्छी, आती थी !
रातें इतनी ....रिक्त नहीं थी !!
मन संकुचित सा.. रहता था !
पर द्वार ह्रदय के बंद नहीं थे !!
जब तुमसे ..सम्बंध नहीं थे !
पीड़ा से ...अनुबंध नहीं थे !!
अश्रु जनित आलाप नहीं था !
प्रहर प्रहर ...संताप नहीं था !!
पुरवाई शीतल.... शीतल थी !
किरणों में वो, ताप नहीं था !!
पुष्प पलाश के खिलते तो थे !
पर उनमें ....मकरंद नहीं थे !!
जब तुमसे ...सम्बंध नहीं थे !
पीड़ा से .....अनुबंध नहीं थे !!
रात्रि-दिवस का भान नहीं था !
उपवन था बियाबान नहीं था !!
होश भले ..कम ही रहता था !
पर खुद से..अंजान नहीं था !!
सीमाएं विस्तृत..विस्तृत थी !
टूट चुके .....तट बंध नहीं थे !!
जब तुमसे ...सम्बंध नहीं थे !
पीड़ा से .....अनुबंध नहीं थे !!
श्वासों का, संवेग भी कम था !
भावुकता आवेग भी कम था !!
सूखे थे नयनो के.. जलाशय !
भावों का ..उद्वेग भी कम था !!
माना जीवन कठिन बहुत था !
पर इतने,, प्रतिबन्ध नहीं थे !!
जब तुमसे ....सम्बंध नहीं थे !
पीड़ा से ......अनुबंध नहीं थे !!
किसे पता था, प्रीत यूं होगी !
प्रिये प्रीत की.. रीत यूं होगी !!
हार मुझे ..स्वीकार्य ही होती !
अगर जानता, जीत यूं होगी !!
याद तुम्हें निशदिन करते थे !
पर इतने भी...पाबंद नहीं थे !!
जब तुमसे ...सम्बंध नहीं थे !
पीड़ा से ......अनुबंध नहीं थे !!
...हरीश भट्ट ...
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