सुनो
जब तुम
होते हो साथ
ये आकाश
क़दमों के नीचे लगता हैं
दूर तक पसरा हो जैसे
सुरमई नीलिमा लिए
उन्मुक्त सागर
आतुर हो जैसे
छूने को
तलवों को मेरे
संभावनाओं का विस्तार
अनंत को
पा ही लेता हैं
समय का बंधन
न किसी पल की
व्यस्तता
एकाकार हो जैसे
इस श्रृष्टि से
और उस के
प्रतिबंधों से
आजाद होने को मेरे
तुम्हारा यूं होना
ऐसे ही सुखद हैं
जैसे बारिश के बाद
की सुनहरी धूप
जैसे सुबह की
मखमली ओस
जैसे दूज की
चांदनी की चंचल फुहार
तुम्हारी खुशबू से
ओत प्रोत
ये कमसिन हवाएं
छूनेको आतुर
हो जैसे
रक्तिम गालों को मेरे
सुनो
रहोगे न ऐसे ही
साथ मेरे '
चाहे आकाश पैरों तले हो
या की विसंगतियों
सा सर पर
सपनीला सागर हो
या की तपती रेत सा
मरुस्थल
मुझे और
कुछ नहीं चाहिए
तुम्हारे पास होने का
एहसास ही बहुत हैं
साँस लेने के लिए
ताजिंदगी ...!!!!
हरीश भट्ट
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