रतनार दोहे ...
झुक कर झुमके ने कहा, ...नथ से बारंबार ।
इतना क्यों इतराय हैं, ....मुख चूमे हर बार ।।
चूड़ियाँ बैरन निकली, ...खनके आधी रात ।
पैंजनियों के शोर में, ....दब गइ आधी बात ।।
गजरा महका रात भर,.. ....कजरारे से नैन ।
गहमा गहमी में रहे,. ....मुख से निकरे बैन ।।
सर सर नयनों के चले,.... सायक मेरी ओर ।
मंद मंद मुस्काय जब,... हृदय चले ना जोर ।।
वासन्ती परिधान हैं,.....कातिल हैं मुस्कान ।
नयन कटारी ज्यों चले,.... कामदेव के बान ।।
बलखाये जब वो चले, ज्यों हिरणी की चाल ।
उलझी उलझी लट बुने, ..गहरा माया जाल ।।
कंचन काया कौमुदी, कोमल कलि कचनार ।
क्या मैं उसको नाम दूं, मुख जिसका रतनार ।।
हरीश भट्ट
(चित्र-साभार सीमा हरीश भट्ट)
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