प्रणय सप्ताह में आज भेंट देने का दिन हैं सो एक गीत आपकी नजर ..
जिसे मैं गा नहीं पाया ..... प्रिये वो गीत हो तुम !
जिसे भूला नहीं हूँ मैं .. ... सखे वो प्रीत हो तुम !!
गजल की वीथिका तुम हो सुरों की रागनी हो तुम !
भले हो दूर तुम मुझसे ....मगर मनमीत हो तुम !!
कभी जो पुष्प बन जाऊं, मुझे बस तोड़ लेना तुम !
कभी जो पवन हो जाऊं, गगन से होड़ लेना तुम !!
अगर दुनियां की ठोकर से, कभी में टूट भी जाऊं !
हैं तुमसे इल्तिजा मेरी ....ह्रदय से जोड़ लेना तुम !!
किसी सागर की लहरों सी, समाई हो कहीं मुझमें !
घटा बन कर के सावन की, हाँ छाई हो कहीं मुझमें !!
दमकती धुप सा हूँ में ....हो तुम आगोश में मेरी !
धवल सी चाँदनी सा में .....नहाई हो कहीं मुझमें !!
सुनो तुम प्राण हो मेरे,..की तुम बिन रह न पाऊंगा !
दिए की भांति जलता हूँ विरह अब सह न पाऊंगा !!
इसे पढ़ लो इन आँखों में..... लिखी हैं वेदना सारी !
जबां पर हैं कई पहरे .....जबां से कह न पाऊंगा !!
हरीश भट्ट
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