वो तुम्हारे हुस्न की, रानाइयाँ ।।
और ये जां सोखता, अंगड़ाइयाँ ।।
साथ में तुम चल सको, तो चलो ।
हैं खड़ी हर मोड़ पर, तन्हाईयाँ।।
इस कदर तन्हां रहा हूँ, रात में ।
दिन में मेरे साथ थी, परछाइयाँ ।।
मैँ किनारे पे खड़ा, तकता रहा ।
उनकी आँखों में रही, गहराइयाँ ।।
दोस्तों से दूर हो, जाओगे तुम ।
इतनी भी अच्छी नही, ऊँचाइयाँ ।।
ये तुम्हारे इश्क़ का, ईनाम था ।
हर कदम पर मिली, रुसवाईयाँ ।।
जब तुम्हारी याद दुल्हन सी सजी ।
देर तक बजती रही,, शहनाइयाँ ।।
हरीश भट्ट