मंदिर के वो दिए
अब किवाडो मैं ये बातें, आम होती हैं
कातिल हैं दस्तकें, जो सरेशाम होती हैं!
उस घर का हादसों से, रिश्ता हैं पुराना
क्या जाने साजिशे कहाँ, अंजाम होती हैं!
मंदिर के वो दिए तो, हमी ने बुझाए हैं
मस्जिद की हवाए, यूहीं बदनाम होती हैं!
हुकूमत के पेचोखम, उन्हें समझाए भी कैसे
सियासत हैं ना ये बाबर हैं, ना राम होती हैं!
भीड़ मैं बलवाइयों के, सर नही होते
ये तोहमते भी, शरीफो पे इल्ज़ाम होती हैं!
इश्क़ की रुसवाइयां, मैं घर मैं ले आया
तूने ही कहा था, जा तेरे नाम होती हैं!
कातिल हैं दस्तकें, जो सरेशाम होती हैं!
उस घर का हादसों से, रिश्ता हैं पुराना
क्या जाने साजिशे कहाँ, अंजाम होती हैं!
मंदिर के वो दिए तो, हमी ने बुझाए हैं
मस्जिद की हवाए, यूहीं बदनाम होती हैं!
हुकूमत के पेचोखम, उन्हें समझाए भी कैसे
सियासत हैं ना ये बाबर हैं, ना राम होती हैं!
भीड़ मैं बलवाइयों के, सर नही होते
ये तोहमते भी, शरीफो पे इल्ज़ाम होती हैं!
इश्क़ की रुसवाइयां, मैं घर मैं ले आया
तूने ही कहा था, जा तेरे नाम होती हैं!
गहराई से लिखी गयी एक सुंदर रचना...
ReplyDeleteबहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..