""कविता""......
कविता उस पहाड़ी झरने के पानी की तरह से हैं निष्कपट,निश्छल,पारदर्शी, जिसमे से झाँक कर कवि की भावनात्मकताए देखी जा सकती हैं
कविता,गीत या ग़ज़ल एक मनः स्थिति हैं भाव का रूपांतरण हैं एक अलग ही दृश्यांतरण हैं कभी कभी तो इस संसार से परे एक संसार रच लेता हैं कवि
रचना तो स्वयंभू हैं स्वरचित.. ये तो ईश्वरीय प्रबलता हैं जो उसके मस्तिस्क की गहराइयों मैं जन्म लेती हैं हृदय के तारों को झंकृत करती हुई मुख के सप्त सुरों पर अवरोहण करती हुई कलम के माध्यम से उभर आती हैं वरकों पर
शाम सबेरे के बंधन से कहो कौन बच पाता हैं शाम सबेरे के रिश्तो मैं प्रकृति मनुज का नाता हैं मैं कल था मैं आज नही वो कल था वो आज नही नव जीवन का नवंकुर भी मृत्यू चक्र से आता हैं
ise main rachna nahi ek reality kahungi.
ReplyDeleteनव जीवन का नवंकुर भी मृत्यू चक्र से आता हैं
is pankti ne man moh liya