आजमाने की ये सजा क्या हैं
ये नावाज़िस मेरे खुदा क्या हैं
सर पे इल्जाम भी तो ले लेते
एसे मरने से, फायदा क्या हैं
उसके चेहरे पे, साफ गोई हैं
कौन जाने ये माजरा क्या हैं
साफ जाहिर हैं इश्क हैं तुमको
बज्म मैं फिर ये मुद्दआ क्या हैं
वक़्त ने भी,, तो बेवफाई की
तू भी कह दे तेरी रज़ा क्या हैं
मैं भी अंदोह-ए-वफ़ा से, छूटूं
पहले ये जान लूं जफ़ा क्या हैं
कैसे कह दूं की, लौट आऊँगा
बद्गुमानों का वायदा क्या हैं
""कविता""...... कविता उस पहाड़ी झरने के पानी की तरह से हैं निष्कपट,निश्छल,पारदर्शी, जिसमे से झाँक कर कवि की भावनात्मकताए देखी जा सकती हैं कविता,गीत या ग़ज़ल एक मनः स्थिति हैं भाव का रूपांतरण हैं एक अलग ही दृश्यांतरण हैं कभी कभी तो इस संसार से परे एक संसार रच लेता हैं कवि रचना तो स्वयंभू हैं स्वरचित.. ये तो ईश्वरीय प्रबलता हैं जो उसके मस्तिस्क की गहराइयों मैं जन्म लेती हैं हृदय के तारों को झंकृत करती हुई मुख के सप्त सुरों पर अवरोहण करती हुई कलम के माध्यम से उभर आती हैं वरकों पर
interesting
ReplyDeleteमैं क्या बोलूँ अब....अपने निःशब्द कर दिया है..... बहुत ही सुंदर कविता.
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