ओर दूसरी दीवार पर रहमान लगा दो
सजदे जो हों रहमान को तो राम को भी हों
फूलो का क्या कसूर हैं दोनो पे चड़ा दो
फिर धूप ओर लोबान से महकेगा पूरा घर
जब आरती अज़ान से गूंजेगा पूरा दर
जब ईद ओर दीवाली दोनो हों एक रोज
हैं तब ही समाधान चाहोगे तुम अगर
गीता क़ुरान रखे हो जब एक जगह पर
हो प्रार्थना मैं शीश या सजदे मैं झुके सर
दोनो को मानने मैं बुराई कहा से हैं
मन्नत हो या दुआ हो दोनो मैं हैं असर
था मेरा क्या कसूर मैं हिंदू के घर हुआ
या उसका कोई दोष वो मुसलमा बना
मैं राम बन सका ना वो बाबर के रहनुमा
फिर क्यों ये तमाशा ये मसलहा बना
Very nice ekdam sahi likha hai
ReplyDelete...... प्रशंसनीय रचना - बधाई
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