Sunday, December 19, 2010

आभावों मैं जीने वालों

आभावों मैं जीने वालों क्यों इतना पछताते हों 
क्यों ओरों की चकाचौध मैं अपनी रात छुपाते हो 
आभावों मैं कौन नही हैं कौन यहाँ परिपूर्ण कहों 
मानव हो ओर मानवता का ह्रास हुआ बतलाते हों 

3 comments:

  1. Bahut khub sir. bilkul sahi likha na koi purn hai na santust har kisi k apne apne abhawon k kisse hain

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  2. @ हरीश जी,
    बिल्कुल सही कहा .......... बहुत ही विचारणीय प्रस्तुति.

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  3. हर बार की तरह शानदार प्रस्तुति

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