लाख मिन्नत तू करे मुझसे.....मैँ बैठा ही रहूँ !
दिल तो करता हैं की, तुझसे यूँही रूठा ही रहूँ !!
दिल तो करता हैं की, तुझसे यूँही रूठा ही रहूँ !!
यूँ तो हसरत थी के आँखों में उतर जाऊँ मैं तेरी !
ये भी क्या कम हैं की पलकों पे मैँ ठहरा ही रहूँ !!
वो मेरा ज़िक्र भी करता हैं,, तो इस सलीके से !
की मैं बदनाम भी हो जाउ तो,, उसका ही रहूँ !!
मुझको बक्शी हैं तेरे ईश्क ने,, तोहमत इतनी !
की मैं दरयाह भी हो जाउ तो,, प्यासा ही रहूँ !!
उम्र भर खुद तो वो, पत्थर की तरह होता गया !
और वो चाहे की मैं उसके लिये, शीशा ही रहूँ !!
मुझको महफिल में भी. सहरा का गुमां होता हैं !
उसकी कोशिश भी यही हैं, की मैं तन्हां ही रहूँ !!
...हरीश भट्ट .....
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