जिसे मैं गा नहीं पाया , प्रिये वो
गीत हो तुम !
जिसे भूला नहीं हूँ मैं,. सखे वो प्रीत हो तुम !!
गीतिका का सार तुम हो, शब्द का आधार
हो !
तुम सुरों की वीथिका हो, ज्ञान का
भण्डार हो !!
नित्य कानों में झरे जो, शाश्वत संगीत हो तुम !
जिसे मैं गा नहीं पाया .... प्रिये
वो गीत हो तुम !!
कभी जो पुष्प बन जाऊं, मुझे तुम तोड़
लेना !
कभी जो पवन हो जाऊ,, गगन से होड़ लेना !!
तुम्हें ना हार का डर हैं,, हमेशा जीत हो तुम !
जिसे मैं गा नहीं पाया ...प्रिये वो
गीत हो तुम !!
मैं माना क्षुद्र हूँ
लेकिन...,.पतनकारक नहीं हूँ !
मुझे तुम साथ ही रखना, कि मैं मारक
नहीं हूँ !!
कि नाहक ही परेशां हो, क्यों भयभीत
हो तुम !
जिसे मैं गा नहीं पाया ....प्रिये वो
गीत हो तुम !!
सुनो तुम प्राण हो मेरे, तुम बिन अन्धकार हैं !
दिए की भांति जलता हूँ.... न कोइ
परावार हैं !!
तुम भले हो दूर मुझसे..मगर मन मीत
हो तुम !
जिसे मैं गा नहीं पाया .... प्रिये
वो गीत हो तुम !!
....हरीश भट्ट .....
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