न वो जला ही लगे हैं, न वो बुझा ही लगे !
अजीब पेड़ हैं पतझड़, में भी हरा ही लगे !!
तेरे शहर से चला हूँ तो, बेवज़ह भी नहीं !
तेरे शहर की फजां में ज़हर भरा ही लगे !!
तेरी ख़ुशी के लिए रोज,, मांगता हूँ दुआ !
ये और बात हैं तुझको वो, बद्दुआ ही लगे !!
वो रात भर था मेरे साथ, इश्क में शामिल !
सुबह को ऐसे वो बदला की, दूसरा ही लगे !!
मैं उसको राम कहूं, और तुम कहो रहमान !
किसी नजर से भी देखो, खुदा खुदा ही लगे !!
मुझे चेहरों के बदलने से, सख्त नफरत हैं !
मैं चाहता हूँ ख़फ़ा हो तो वो, ख़फ़ा ही लगे !!
मेरा हर दर्द मेरे अशआर में, मिलेगा तुम्हें !
ये लाज़मी तो नहीं हर जख्म भी हरा ही लगे !
मैं इस अंजाम पर अब खुद को रोक लेता हूँ !
न जाने कब तुझे किस बात का बुरा ही लगे !!
हरीश भट्ट
अजीब पेड़ हैं पतझड़, में भी हरा ही लगे !!
तेरे शहर से चला हूँ तो, बेवज़ह भी नहीं !
तेरे शहर की फजां में ज़हर भरा ही लगे !!
तेरी ख़ुशी के लिए रोज,, मांगता हूँ दुआ !
ये और बात हैं तुझको वो, बद्दुआ ही लगे !!
वो रात भर था मेरे साथ, इश्क में शामिल !
सुबह को ऐसे वो बदला की, दूसरा ही लगे !!
मैं उसको राम कहूं, और तुम कहो रहमान !
किसी नजर से भी देखो, खुदा खुदा ही लगे !!
मुझे चेहरों के बदलने से, सख्त नफरत हैं !
मैं चाहता हूँ ख़फ़ा हो तो वो, ख़फ़ा ही लगे !!
मेरा हर दर्द मेरे अशआर में, मिलेगा तुम्हें !
ये लाज़मी तो नहीं हर जख्म भी हरा ही लगे !
मैं इस अंजाम पर अब खुद को रोक लेता हूँ !
न जाने कब तुझे किस बात का बुरा ही लगे !!
हरीश भट्ट
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