विधाता छंद ...
कभी तो पास बैठो तुम,, कभी तो मुस्कुराओ तुम !
जिसे अपना समझ लू मैं, कभी वो गीत गाओ तुम !!
मुझे तुमसे मुहब्बत हैं, .....तुम्हें भी हैं यकीनन ही !
ज़रा कांधे प् सर रख दो, ..ज़रा नजरें मिलाओ तुम !!
कभी तो पास बैठो तुम,, कभी तो मुस्कुराओ तुम !
जिसे अपना समझ लू मैं, कभी वो गीत गाओ तुम !!
मुझे तुमसे मुहब्बत हैं, .....तुम्हें भी हैं यकीनन ही !
ज़रा कांधे प् सर रख दो, ..ज़रा नजरें मिलाओ तुम !!
हरीश भट्ट
द्वितीय प्रयास
किनारों को नहीं मिलना, लिखा था मिल न पाये हम !
कदम दो चार भी हमदम, सहज ही चल न पाये हम !!
तिमिर था दूर तक पसरा, ....उजाले साथ थे लेकिन !
हवाएं तेज थी इतनी, .....दिये सा जल न पाये हम !!
हरीश भट्ट
द्वितीय प्रयास
किनारों को नहीं मिलना, लिखा था मिल न पाये हम !
कदम दो चार भी हमदम, सहज ही चल न पाये हम !!
तिमिर था दूर तक पसरा, ....उजाले साथ थे लेकिन !
हवाएं तेज थी इतनी, .....दिये सा जल न पाये हम !!
हरीश भट्ट
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