कल मैने धर्म पत्नी जी से कहा इस मिसरे पर कुछ तरही गजल सुझा दें मिसरा था ....
"न किसी राहबर न रहगुजर से निकलेगा "
"न किसी राहबर न रहगुजर से निकलेगा "
धर्मपत्नी ने मज़ाहिया अंदाज में जो कहा आपकी नजर
मेरा तो अब उस दिन ये दर्द सर से निकलेगा !
जब ये चाबियों का गुच्छा कमर से निकलेगा !! सास को
कभी जो काम बताओ तो पढ़ाई का रोना हैं !
खबरदार जो छुट्टी के दिन तू घर से निकलेगा !! बेटे को
हर लम्हा नजर टिकी रहती हैं लाइक कमेंटों पे !
ये फेसबुकिया भूत कब तेरे सर से निकलेगा !! बेटी को
न जाने कब बंद होगा छत पे टहलना इसका !
न जाने कब ये पड़ोसन के असर से निकलेगा !!पति को
इस शहर के सब दुकानदार मुझसे वाकिफ हैं !
हैं कोई मॉल जो अब मेरी नजर से निकलेगा !! खुद को
मेरा तो अब उस दिन ये दर्द सर से निकलेगा !
जब ये चाबियों का गुच्छा कमर से निकलेगा !! सास को
कभी जो काम बताओ तो पढ़ाई का रोना हैं !
खबरदार जो छुट्टी के दिन तू घर से निकलेगा !! बेटे को
हर लम्हा नजर टिकी रहती हैं लाइक कमेंटों पे !
ये फेसबुकिया भूत कब तेरे सर से निकलेगा !! बेटी को
न जाने कब बंद होगा छत पे टहलना इसका !
न जाने कब ये पड़ोसन के असर से निकलेगा !!पति को
इस शहर के सब दुकानदार मुझसे वाकिफ हैं !
हैं कोई मॉल जो अब मेरी नजर से निकलेगा !! खुद को
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