शुभ प्रभात दोस्तों
एक नज़्म
एक नज़्म
आँखों में तिश्नगी हैं, हर इक जुबां पे ताले हैं !
जाने ये लोग कैसी, दुनिया के रहने वाले हैं !!
जाने ये लोग कैसी, दुनिया के रहने वाले हैं !!
बस्ती में मर गया था कल एक बशर कभी का !
रूकती कहाँ हैं सांसें, रुकते कहाँ निवाले हैं !!
रूकती कहाँ हैं सांसें, रुकते कहाँ निवाले हैं !!
तुम बात कर रहे हो,, जिन दोस्तों की यारो !
इनसे ना होगा कुछ भी, ये मेरे देखे भाले हैं !!
इनसे ना होगा कुछ भी, ये मेरे देखे भाले हैं !!
कुछ खामियां हैं मुझमें, रुस्वाइयाँ भी होंगी !
जैसा भी शख़्श हैं ये, अब आपके हवाले हैं !!
जैसा भी शख़्श हैं ये, अब आपके हवाले हैं !!
किस पर सवाल रखते, क्या इंतजाम करते !
कुछ सांप हमने बरसों, इस आस्तीं में पाले हैं !!
कुछ सांप हमने बरसों, इस आस्तीं में पाले हैं !!
तुमको भी इश्क़ होगा, तुमने भी चाहा होगा !
ऐसे सवाल हँस कर, मुद्दत से हमने टाले हैं !!
ऐसे सवाल हँस कर, मुद्दत से हमने टाले हैं !!
....हरीश भट्ट ....
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