भीड़ का हिस्सा हूँ, हजारों की तरह !
रोज़ छपता हूँ मैं, अखबारों की तरह !!
बेपता हूँ मगर किसी तलाश में हूँ !
दर-ब-दर इश्क केमारों की तरह !!
मेरे हर सिम्त, हैं तो गुलाबी चेहरे !
मैं गुलों में रहता हूँ, खारों की तरह !!
रोज़ छपता हूँ मैं, अखबारों की तरह !!
बेपता हूँ मगर किसी तलाश में हूँ !
दर-ब-दर इश्क केमारों की तरह !!
मेरे हर सिम्त, हैं तो गुलाबी चेहरे !
मैं गुलों में रहता हूँ, खारों की तरह !!
मेरे दोस्त हैं जो, वतन पे मरते हैं !
मैं भी दिलफेंक हूँ,, यारों की तरह !!
मेरा हर दिन, खिजां में गुजरा हैं !
अब क्या लौटूंगा, बहारों की तरह !!
मुझे महफ़िल में, ना तलाशों यारों !
खुद की गर्दिश में हूँ, तारों की तरह !!
मेरा हर दिन, खिजां में गुजरा हैं !
अब क्या लौटूंगा, बहारों की तरह !!
मुझे महफ़िल में, ना तलाशों यारों !
खुद की गर्दिश में हूँ, तारों की तरह !!
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