किसी की गर्म निगाहों में ढल के देखते हैं !
जरा सा बर्फ की मानिंद पिघल के देखते हैं !!
बहुत किये हैं उजालों ने, जिंदगी में सितम !
कुछ एक पल को, अंधेरों में चल के देखते हैं !!
वो जब भी गुजरते हैं, ठहर जाते हैं हर्फों पर !
अभी कुछ जलवे, वो मेरी गजल के देखते हैं !!
बहुत हुआ नहीं बदला, इस शहर का मिजाज !
हम अपनी आँखों के चश्में, बदल के देखते हैं !!
जरा सा बर्फ की मानिंद पिघल के देखते हैं !!
बहुत किये हैं उजालों ने, जिंदगी में सितम !
कुछ एक पल को, अंधेरों में चल के देखते हैं !!
वो जब भी गुजरते हैं, ठहर जाते हैं हर्फों पर !
अभी कुछ जलवे, वो मेरी गजल के देखते हैं !!
बहुत हुआ नहीं बदला, इस शहर का मिजाज !
हम अपनी आँखों के चश्में, बदल के देखते हैं !!
सुना हैं चेहरे पे उनके, खिला हैं पहला गुलाब !
चलो हम भी जरा, घर से निकल के देखते हैं !!
तुम्हारे चेहरे का ये मौसम, बदलना चाहता हूँ !
सुबह की धूप में कुछ देर, टहल के देखते हैं !
बहुत चला हूँ मैं तन्हां ही, जिंदगी का सफ़र !
गर एतराज न हो तो , साथ चल के देखते हैं !!
मेरी वफ़ा को ठुकरा दिया था जिसने कभी
उन्हीं के सीनों पे अब मूंग दल के देखते हैं
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