ये बुखार का खुमार
(डेंगू जनित प्रलाप)
अजब सी
बेकसी का सबब
और ये बुखार का आलम
सर्द कमरे में भी
गर्मी की हरारत
घुल सी गई हो जैसे
बिस्तर तक पसरी कैफ़ियत
बैचैन सा तकिया
अनमनी सी चादर
सिलवट सिलवट
इंतजार की घड़ियों की तरह
घटता बढ़ता
थर्मामीटर के पारे का सुर
100...101...102..103
बेकरार आपे से बाहर
होने को आतुर
सफर दर सफर
नादां सी मुहब्बत की तरह
अब किसी दवा का असर
बेसबब बेअसर
हाँ
अब चाँद रात
पूरे यौवन पे हैं
महसूस होने लगी हैं
खुद की सांसों की आंच
कितने ही दवाई के पर्चे
बेतहाशा खर्चे
सुबह शाम की
अनगिनत जांच
रक्त जम सा गया हैं
शिराओं में
टेस्ट रिपोर्ट भी
तुम्हारे खत की तरह हो गई हैं
जब भी आती हैं
नाउम्मीदी से भरी हुई
बुखार....
पूरी शिद्दत से
अपनी पनाह में ले चुका हैं...
की जैसे उसको
बनाया गया हो
मेरे लिए
की जैसे किसी ने
कस के भींचा हो
अपनी आगोश में
कौन आना भी चाहेगा
अब होश में ...
बदन के टूटने का लुत्फ
सपनों के टूटने
से कम तो क्या ही होगा
पलकों का भारीपन
बेसबब बेस्वाद मन
जाने कितनी ही
हसरतों का साया
आधी अधूरी सी झपकियां
जाने किस किस ने पूछा
जाने कौन कौन आया
पूरी छत का बोझ
उठाये हुए
रात गुजर रही हैं
रफ्ता रफ्ता
गुजरती हुई
उम्मीद की तरह
रेज़ा रेज़ा
ग्लूकोज की बॉटल
उफ़क पर टंगे
चाँद सी लगती हैं
कितनी हसरत हैं
जरा सी गर्दन बढ़ा के
एक झलक
उसके मासूम से चेहरे को
बेखयाली से तकते रहने की
उसकी टप टप को
देखने का शगल
होता जा रहा हैं
दीदार ए यार हो जैसे...
हाँ ..माशूक की
जुल्फों से टपकती
बूंदों की तरह
जर्रा जर्रा
नमकीन पानी की बूंदें
जब बदन में
समा रही होती हैं
तो मखमली सा एहसास
नसों में
तूफान ला देता हैं
कभी कभी मगर
किसी की ख़ुश्बू से तर
हो जाती हैं हवा
मेरे आसपास की
और सर्द कमरा
महकने लगता हैं
किसी ने अभी अभी
माथे पे हाथ
रखा हो जैसे
कोई छू कर
गुजरा हो जैसे
और जिंदगी
जीने मरने के तलातुम में
लौट आई हो जैसे
वो स्पर्श
जा नही पाता
देर तलक भी
पी लेता हूँ
ये कड़वे बदरंग से सिरप
एक सांस में
काश की
जिंदगी भी
पी जाती एक घूंट में ही
तो इतनी बदमज़ा न होती
जाने क्यों हसरतें
बार बार लौट आती हैं
इंफेक्शन की तरह
कटीली सी यादें
चुभ रही हैं
किसी इंजेक्शन की तरह
सुनो
तुम आओगे ना
किसी रोज़
मोगरे के फूल लिए
मुझे देखने के बहाने ही सही
शर्त रही चलो
मेरे ठीक होने की
ओर तुम्हारी मुहब्बत की
निभाओगे न
इंतजार रहेगा
तुम्हारी सुबह
नजदीक हैं शायद
मेरी नींद
सो गई हैं कहीं और जा कर
हरीश भट्ट
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