Monday, June 27, 2016

कुछ दोस्तों के जाने की जद्दो जहद में.....

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ये जो दर्द सीने में भर गया, यूंही आ के दिल में पसर गया !!
इसे जाने किसकी हैं जुस्तजू, यहीं आ के जो ये ठहर गया !!
कभी तुझसे बाबस्ता था मैं.... तेरी आदतों में शुमार था !
मुझे देखे बिन गुजरा न जो, वही वक्त आखिर गुजर गया !!
मैं तो तुझसे आशना था मगर, तुझे और ही की तलाश थी !
था नवाज़िशों का भरम तुझे, न वो रब्त था न असर गया !!
कभी तो मिलो किसी ग़ज़ल में, किसी नज्म में क़त'आत में !
हुए तुम शहर से यूं गुमशुदा, जैसे नगमा लब से बिखर गया !!
ना मैं हिज्र में ना विसाल में, ना किसी के बेज़ा ख्याल में !
कभी रुख़सती पे ये सोचना, यहीं था अभी जो किधर गया !!
........हरीश.......

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