Monday, June 27, 2016

पीपल


मगरूर आँधियों में जब्त का, संबल खड़ा हैं !
मोड़ पर मेरे गली के , वृद्ध सा पीपल खड़ा हैं !!
रोज उसकी पत्तियों में, साँस लेता हैं शहर !
ऐसा लगता हैं की वो पीपल नहीं, संदल खड़ा हैं !!
इतना ऊँचा हैं की, पूरे अस्मा तक ज़ज़्ब हैं !
इतना फैला भी के, मां का वो आँचल जड़ा हैं !!
रो रहा हैं सर पटकता हैं, मेरी नादानियों पर !
कट रहे पेड़ों पर कातर हैं, वो कुछ बोझिल खड़ा हैं !!
एक पीपल मेरे ह्रदय में भी, उगा हैं आजकल !
यूं गुलमोहर कम ही हैं मुझमें, तीक्ष्ण सा जंगल बड़ा हैं !!
.............हरीश.........

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