उन्मांद की ऐसी परिणिति
अक्षम्य भी हैं
शब्दकोष में तो कभी
मान मर्यादा
जातिगत दिखता हैं
न किसी वर्ग विशेष से
क्या रक्खा हैं
मृत्यु
मौन हैं
न्याय का देवता भी
उपेक्षित पर उद्वेलित
सोचता हूँ
इस दंड के लिए
किसी शब्दकोष मैं
हाँ ...
आँख के बदले आँख
और हाथ के बदले हाथ के
रामबाण न्यायसूत्र
की कह दूं
तो
मानवाधिकार
के बलात्कार का
गैर जमानती आरोप
चस्पा होते देर न लगेगी
कटु सत्य .... आज के दुखद हाल तो यही हैं
ReplyDeleteइस शब्द से घृणित कोई शब्द नहीं है आदरणीय.बहुत ही बेहतरीन प्रभावी रचना.
ReplyDelete"जानिये: माइग्रेन के कारण और निवारण"