कान्तियुक्त चेहरे पे मेरे
कई पठारीय परिदृश्य
उभर आये हैं अब
अनगिनत लकीरे
भयावहता की
अकल्पनीय टीस और
पीड़ा से भरे हुए !!!
सुन नहीं पाती हूँ
माँ की चीख .....
कान के परदे तक
पंहुचा होगा कुछ तरल
न जाने
कौन से अस्पताल का पता
पूछ रहे हैं पड़ोसी
देख ही नहीं पा रही हूँ
अब कोई भी बोर्ड
सांस लेने के रास्ते
या तो अवरुद्ध हैं
या मिट चुके हैं
एसिड .....
ऐसा ही होता होगा शायद
कभी....
सुना भी न था
किसी ने..
बताया भी नहीं
की चेहरे को चीरती हुई
तरल की कुछ बूंदे
कितनी तीक्ष्ण होती जाती हैं
मेरा कसूर ...
कब बताओगे तुम
तुम ..!!
या तुम्हारा समाज ????
जिन्दा रहना ही क्या
काफी होता हैं...
रह के तो देखो फिर
केवल कुछ
सुराखों के साथ
पथरीला सा चेहरा लिए
हाँ ....
तुमने ही तो उडेला हैं
ये तेज़ाब...
तुम्हारे मष्तिष्क की
कड़वाहट ने सींचा हैं इसे
तुम्हारी विकृत सोच ने
खौलाया हैं इसे..
तुम गुनाहगार हो मेरे
याद रखना !!
किसी दिन
किसी सूनसान तिराहे पर
खड़ी मिलूंगी मैं जरूर
तुम्हारे इन्तजार मैं
बोतल में लिए हुए
कुछ कतरे
तेज़ाब के
अगर जिन्दा रही तो ..........
फिर सोचती हूँ ..
ईश्वर न करे
कहीं
कल
तुम्हारे आंगन मैं
बेटी बन के पैदा हुई तो ..!!??
यही
छिद्रित सा
चेहरा लिए ...!!!???