तुम,,
कैसे बुन लेती हो !!
कविता भी,,
स्वेटर कि तरह !!!
एकसार त्रुटिहीन..
गुनगुना सा...!!
शब्द ,,
एक दूसरे में गुथे हुए,,,
प्रीत के फंदों में सिमटे ,,,
अनगिनित रंगों ...
असीमित विस्तार ,,
में सजे हुए ..!!
ऊन का सा
मखमली एहसास..
कविता में भी ..!!??
कैसे पिरो लेती हो तुम..!!""
सृजन की यह आत्मीयता
स्संस्कार ही होगी तुममे
या कालांतर में विकसित
हुई हैं ये कला..!!
अपरिपक्व शब्दों से
मंथरित वाक्यांशों तक
यूंही तो गढ़ती थी तुम
ऊन के लच्छों को
व्यवस्थित गोलाइयों में
बुनावट का ये क्रम
कैसी तल्लीनता का द्योतक हैं..!
सुध बुध विहीन हो जैसे..!!
कैसे पिरो लेती हो ..??
सुख -दुःख को
शब्दों की सिलाइयों में
सभी रंग तो हैं यहाँ
देखो तो ..
कभी मात्राओं की तरह
फंदों का घट बढ़ जाना
कभी वैचारिक तारतम्य का
धागों की तरह टूट जाना
कभी किसी कोने में
अधबुना सा
अधलिखा सा छूट जाना
कभी अखबार
या चाय की चुस्कियों के साथ
जब तुम पूछ लेती हो
शोख रंगों या पैटर्न
के बारे में
विन्यांश या साइज के बारे में
में उलझ सा जाता हूँ ..!!??
तुम नए स्वेटर की बात कर रही हो
या नई कविता की
लो..!!!!
कब पूरा कर लिया तुमने इसे..,,!!
पता ही नहीं चला
गर्वित सी उश्मिता लिए
ओढ़ लेता हूँ मैं
स्वेटर हो
या तुम्हारी पंक्तियाँ
ह्रदय से लगी हुई ..!!
और.. बढ़ जाती हैं
आँखों की चमक
जब मेरे नाम को उकेर लेती हो तुम
अक्षरों के धागों में
सोचता हूँ...
की तुम ...,,
"स्वेटर"
ज्यादा अच्छा बुनती हो...
या
"कविता" ..?!?!
wah harish ji kabhi kabhi sabad nahi hote hai tarif ke liye bhaut shandar bhaut sundar
ReplyDeleteएहसास की गर्माहट लिए खूबसूरत रचना
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ReplyDeleteआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 27-09 -2012 को यहाँ भी है
.... आज की नयी पुरानी हलचल में ....मिला हर बार तू हो कर किसी का .
bahut badhiya shodon ka samagam...dhnywad kabhi samay mile to mere blog http://pankajkrsah.blogspot.com pe padharen swagat hai
ReplyDeleteओह ओह ओह...एक एक शब्द इतने प्यारे अहसासों से लवरेज है कि मन करता है यह कविता कभी खत्म ही न हो.
ReplyDeleteबहुत बहुत खूबसूरत. आभार संगीता स्वरुप की हलचल का, यहाँ तक पहुँचाने के लिए
kam to aap bhi nahi....hatprabh hun....ki saans kaha lene ka mauka mile.....lekin mila hi nahi.....kaise shabd dar shabd goonth liye apne is kavita ki mala me.
ReplyDeletebahut khoob.
बहुत शुक्रिया अनुज जी आभारी हूँ
ReplyDeleteआभारी हूँ संगीता जी ...
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया आपको समय देने का
धन्यवाद पंकज जी ...शुक्रिया बहुत
ReplyDeleteआपको पढने का मौका मेरे लिए सम्मान कि बात हैं
बहुत आभार शिखा जी
ReplyDeleteधन्यवाद और स्वागत आपका मेरे ब्लॉग पर ...
पुनः धन्यवाद संगीता जी का भी
आभारी हूँ अनामिका जी
ReplyDeleteरचना का भावशेष आप तक पंहुचा ..यही रचना कि कामयाबी हैं
पुनः आभार
"काश कविता लिखना इतना ही सरल होता"
ReplyDeleteमैं आपसे इत्तेफाक रखता हूँ 'सरस' जी ....
आभारी हूँ और शुक्रिया भी आपके सरस शब्दों का
शुक्रिया नादिर साहब
ReplyDeleteबहुत आभार रचना तक पहुचने का
बहुत सुन्दर..शब्दों और भावों का अद्भुत संयोजन.....
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