वो जो शिद्दत से घर गया होगा !
कच्ची मिट्टी से, भर गया होगा !!
कितनी मासूम,, जिंदगी लेकर
!
जलजला था,, गुजर गया होगा !!
सर पे जब छत दरक रही होगी !
माँ से चिपका, वो डर गया होगा !!
अब न चीखें,, न कोई आवाजें !
उसको छोड़ो, वो मर गया होगा !!
हाथ और पैर का तो, क्या रोना !
जाने कितनों का, सर गया होगा !!
अब न मंदिर बचा,, न चौराहा !
काठ का घर था, गिर गया होगा !!
जिंदगी,, फिर भी मुस्कुराती हैं !
कुछ दुआ का, असर गया होगा !!