जब तिमिर द्वार पर पसरा हो और व्योम घना घन गर्जन हो
जब मानवता का ह्रास प्रबल, और भूख प्यास का क्रंदन हो
जब चहूँ ओर चीत्कार मचे,, और मानवता अकुलाती हो
जब पाप हो पोषित घर घर में,, पृथ्वी की फटती छाती हो
तब कौन तुम्हे आह्वाहन दे ,,, तुम मोह पाश का बंधन हो
नव वर्ष !! तुम्हारे आने पर क्यों कहूँ तुम्हे अभिनन्दन हो ??
जब विद्या के उस आलय में सौ सौ बच्चो की चिता जली
जब क्षत विक्षत हो ललनाएँ ,, अपने ही हाथों गई छली
क्यों उठी नहीं ये सुन कर भी,, चीत्कार तुम्हारे होठों पर
क्यों कान तुम्हारे बंद हुए थे,, उन आतंकी विस्फोटों पर
कब बचा सके तुम लाज कहो हाँ सभ्य नहीं तुम दुर्जन हो
नव वर्ष !! तुम्हारे आने पर क्यों कहूँ तुम्हे अभिनन्दन हो ??
गत वर्ष भी तो तुम आये थे,, शोभित नूतन सी आस लिए
नवकोंपल और नवजीवन का स्वप्नीला सा, विश्वास लिए
तब भी तो तुम्हारे स्वागत में,, हमने सुध - बुध बिसराई थी
नव तिलक किया था माथे पर कोमल कलियाँ बिखराई थी
पर मिटा सके कब माथे से,, तुम रक्तजनित उस चन्दन को
नव वर्ष !! तुम्हारे आने पर क्यों कहूँ तुम्हे अभिनन्दन हो ??
अब तो मित्र उत्सुक्त नहीं, न आल्हादित हूँ तुम्हारे आने पर
अब न कोई प्रतिकार ही हैं ,,ना प्रतिरोध तुम्हारे जाने पर
जाने हो कैसा स्वर्णिम युग,, जिसका संकल्प दिया तुमने
में भुजा पसारे याचक था,, पर निष्ठुर,, अल्प दिया तुमने
क्यों कहो की फिर सत्कार करूँ औ क्यों ये तुम्हारा वंदन हो
नव वर्ष !! तुम्हारे आने पर क्यों कहूँ तुम्हे अभिनन्दन हो ??