Monday, July 23, 2012

रोटियां !

हर उम्र हर इक दौर को, ढोती हैं रोटियां !
ओ देश तेरे हाल को..., रोती हैं रोटियां !!

बचपन गया सूनी रही, अम्मा कि कढ़ाही  !
आई जो जवानी रही... रोटी कि लड़ाई !
रिश्तों ने भी बस खून कि हैं, प्यास बढाई!
हैं कौन वो जिसके नहीं, फूटी ये बिवाई !

कितने जतन से टीस भी, बोती हैं रोटियां!
हर उम्र हर इक दौर को, ढोती हैं रोटियां !!

कितनी ही सभ्यताएं , नस्लें भी खट गई !
रोटी कि भूख में कई...किश्तों में बट गई !
विस्तृत थी जो एश्वर्य में, सीमायें घट गई !
गंगा-ओ-रावी कि धरा, लाशों से पट गई !

मस्तक को अपने रक्त से, धोती हैं रोटियां !
हर उम्र हर इक दौर को, ढोती हैं रोटियां !!


उस माँ से पूछो जिसका, चूल्हा नहीं जला !
परदेश गया था वो जो, बेटा.. नहीं मिला !
रोटी कि कशमकश में, दिए सा जो जला !
जीवन कि रसोई ने उसे, चुपचाप ही छला !

बरसों  तवे पे खुदको ही, सेती हैं बेटियां !
हर उम्र हर इक दौर को, ढोती हैं रोटियां !!