Friday, January 20, 2012

हे लोकतंत्र .....तेरी जय हो !!

 
राजनीत के ये कैसे....फंडे हैं ,
हर हाथ में कितने.... डंडे हैं !
सर को तो फिरा कर देख जरा,
जाने., किस किसके.. झंडे हैं !!


कितना हैं घिनौना खेल यहाँ,
धुर विरोधियों का.. मेल यहाँ!
कल तक न सुहाते फूटी आँख,
अब मिलके बिलौते तेल यहाँ !!


अब एक ही झंडा सर  पर हैं ,
जो मेरा  तुझको... अर्पण हैं !
वोटर तो बेचारा..काठ का हैं,
उसका जीते जी..... तर्पण हैं!!


सौ सौ पर भारी.. नेता यहाँ ,
छुटभैय्ये बने हैं.. खेता यहाँ !
सर झुका दंडवत.. चरणों में ,
भ्रम ,कलयुग हैं या त्रेता यहाँ !!


फिर  पाच बरस का मेला हैं ,
पर वोटर निपट.. अकेला हैं !
विश्वास,ईमान कि कौन कहे,
बस तिकड़म का ये खेला हैं !!


दलबदलुओं कि हैं जमात यहाँ,
गिरगिट भी मांगे पनाह यहाँ !
बटती जूतों में दाल हर तरफ ,
टिकट की हैं बस,. चाह यहाँ !!


अब कहो मित्र किसको मत दें,

तुम रहनुमा हो किसको कहदें !

हर बार छला हैं... जनता को ,

क्यों वोट करे क्यों फिर शहदें !!


वो बूथ लुटा क्या जनमत हैं ,

गोली कट्टों की.. दहशत हैं !

हैं कौन यहाँ जिसका भय हो,

हे लोकतंत्र...... तेरी जय हो !

हे लोकतंत्र .....तेरी जय हो !!

Sunday, January 8, 2012

ओ चितेरे !!

ओ चितेरे !!
मध्यमा और अंगुष्ठ

में कर

रचयनी

उकेरे हैं जो

दृश्यमान तूने

उन पर

भावों का

प्रत्यर्पण

तेरे कर में नहीं

ये समर्पण नहीं

कि उढ़ेल लो

साधिकार

अक्षरश

न होगा

यदि

धानी चूनर

धानी

न हुई तो 

रचना का

दारिद्य

कौन सहेगा फिर ???

यह बलात नहीं

सम्भोग हैं

उकेरे जाने के 

प्रसव

और उकेरने के

संसर्ग

कि प्राराब्धता

हैं,

ये, तो.